RAM RAJYAजय श्री राम सेना

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्याप।। सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीत।।
यानी ‘रामराज्य’ में किसी भी मनुष्य को दैहिक, दैविक और भौतिक समस्याओं से परेशान नहीं होना पड़ता. सभी मनुष्य आपस में प्रेम से रहते हैं. वे नीति और मर्यादा में तत्पर रहकर अपने-अपने मनुष्योचित धर्म का पालन करते हैं. लेकिन अब तुलसीदास को भी कथित ‘रामभक्तों’ ने इतना संकीर्ण बना दिया है कि आज तुलसीदास यदि स्वयं मौजूद होते तो अवश्य ही कुछ कहते. हालांकि ऐसे भेड़ियाधसान ‘भक्तों’ की आशंका उन्हें पहले से ही रही होगी इसलिए उन्होंने अपनी एक अन्य पुस्तक ‘दोहावली’ में लिखा है -
तुलसी भेड़ी की धंसनि, जड़ जनता सनमान। उपजत ही अभिमान भो, खोवत मूढ़ अपान।।
तुलसीदास कहते हैं कि भोली जनता तो भेड़ियाधसान के समान है - एक भेड़ जहां गिरा, सब वहीं गिरने लगते हैं. इसलिए ऐसी जनता से मिली मान-बड़ाई भी मिथ्या है. इसे पाकर जिसके मन में अहंकार उत्पन्न होता है, वह मनुष्य मूढ़तावश अपना आपा खो बैठता है और अपने पद से गिर जाता है.


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